भारतवर्ष में यदि हम किले की बात करें तो हमारा पहला ध्यान राजस्थान की तरफ ही जाता है. राजस्थान में समय समय पर वीर राजपूतो द्वारा निर्मित अनेकों महल दिखलाई पड़ते है.
कुछ किलों को पर्यटनकेलिए खोला गया है तो कुछ को होटल्स में तब्दील कर दिया गया है. लेकिन किलों के मामले में हमारा उत्तर प्रदेश और खासकरके वाराणसी शहर भी कम नहीं है. वाराणसी स्थित रामनगर किले के बारे में शायद ही कोई नहीं जनता होगा.
यूँ तो इंटरनेट पर आपको इस किले के इतिहास और इसके वास्तुकला के बारे में बहुत अच्छी अच्छी जानकारी प्राप्त हो जाएँगी लेकिन आज के इस आर्टिकल मे हम रामनगर किले में रखी दुर्लभ वस्तुओं के बारे में जानेंगे साथ ही साथ हम इनके रखरखाव को भी समझने प्रयास करेंगे.
रामनगर किले का इतिहास [Ramnagar kila history]
रामनगर का किला वाराणसी में स्थित है.यह किला माँ गंगाके पावन तट पर स्थित है.इस किले को मुग़ल स्थापत्यकला में निर्मित किया किया गया था. वर्ष 1750 में इस किले का निर्माण काशी नरेश महाराज बलवंत सिंह द्वारा किया गया था.
म्यूजियम में रखी वस्तुएं [Ramnagar fort collections]
रामनगर किले के म्यूजियम में आपको तोप बंदूके कार बैलगाड़ी महाराजा एवं महारानी द्वारा दैनिक जीवन में प्रयोग में लाने वाली तमाम चीजें साथ ही साथ खुबसुरत वाद्ययंत्र भी रखे हुए है. जिन्हे आप सभी देख पाएंगे और अपने गौरवशाली इतिहास पर और अधिक गर्व कर पाएंगे.
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आइये सैर करें [Lets have a walk]
हमारी यात्रा टिकट काउंटर से शुरू होती है. बड़ो के लिए 75 रूपये तो वही बच्चो के लिए 20 रूपये निर्धारित शुल्क रखी गयी है. हमने भी टिकट लिए और वही पास ही में म्यूजियम का प्रवेश द्वार है.
जहाँ से हमे म्यूजियम में एंट्री लेनी होती है. जहाँ एक बार फिर से आपकी टिकट की जाँच की जाती है तो अपना टिकट संभल कर रखें.
तो हमने म्यूजियम में प्रवेश किया. प्रवेश करते ही हमारे सामने अंग्रेजों के ज़माने की प्रसिद्ध गाडी दिखाई दिया जिसका नाम थे – लाँडो गाडी. इस गाड़ी को देखकर आप स्वतः ही अंग्रेजों के शाशनकाल में खो जायेंगे.
आगे बढ़ने पर हमे हाथी दन्त से बानी बग्गी बग्गी दिखाई दी इसके आलावा यहाँ पर आपको चांदी कोच दिखलाई पड़ी जिसका अगलाहिस्सा पूरी तरह से चांदी धातु से निर्मित था.
अच्छा एक बात ओर एक तरफ जहाँ हमें आधुनिक गाडी दिख रही थी तो दूसरी और आम आदमी के प्रयोग में लायी जानी वाली चीजें जैसे टमटम एवं बैलगाड़ी भी दिखलाई पड़ी. बैलगाड़ी आकृति में काफी लम्बी थी.
इसके आलावा हाथगाड़ी भी थी. हाथगाड़ी यानी की हाथ से खींचकर ले जाने वाली गाडी.इसके बारे में और अधिक जानकरी के लिए आप ब्योमकेश बक्शी या फिर गूगल की सहायता ले सकते है.
इन सभी गाड़ियों के आलावा जिसने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वो थी – प्लायमाउथ एवं फोर्ड की गाड़ियां. जी हाँ ये गाड़ियां इस म्यूजियम की शान में चार चाँद लगा रही थी.
मैंने पहली बार किसी प्लायमाउथ की गाड़ी देखि थी. फोर्ड की गाड़ियां तो आप आज भी अपनी सड़को पर देख सकते है जिनमे फोर्ड कीएंडवार इकोस्पोर्टे एवं फॉर की मस्टंग को भला कौन नहीं जनता होगा.
प्लायमाउथ एक चार पहियों वाली गाडी थी जिसम ६ सिलिंडर वाला इंजन लगा हुआ है और तो और इसे अमेरिका से ही इम्पोर्टे किया गया था यानी ये गाडी अमेरिका से बनाकर आयी थी यही हाल बाकी की गाड़ियों का भी था.
चूँकि हमारा प्यारा भारतवर्ष उस वक्त अंग्रजी हुकूमत का गुलाम था तो हम औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ भी कैसे सकते थे.
खैर आगे बढ़ते है अच्छा एक सबसे बड़ी खासियत इन गाड़ियों की ये थी की ये आकर में काफी बड़ी थी लगभग १० फ़ीट के आसपास और पूरी तरह से धातु से निर्मित. कुछ गाड़ियों के दरवाजे लकड़ी के बने हुए थे लेकिन विंडस्क्रीन आज भी अच्छी हालत में थी.
मिनरवा एक बेल्जियम में निर्मित गाडी जो की सम्भवता सैनिको को ले आने एवं ले जाने के लिए बनायीं गयी थी. ये गाडी भी आकर में काफी बड़ी थी. ये गाडी १९१७ में बनायीं गयी थी यानी विश्व युद्धके दौरान निर्मित गाडी. उम्मीद है आप भी इसे देखकर रोमांचित महसूस करेंगे.
आगे बढ़ने पर हमें ढेर सारे पालकी, खटोला, नालकी इत्यादि चीजे मिली जिसका प्रयोग संभवतः महारानी एवं राजघराने के लोग ही करते थे. इसे देखकर आपको बाहुबली का एक दृश्य भी ध्यान में आ जायेगा.
ये वही दृश्य है जहाँ देवसेना अपनी प्रजा को डाकुओं के आतंक से बचने के लिए जंगल में पहुँचती है और एक रोमांचक दृश्य हमें देखनेको मिलता है. इन पालकी ओर नलकीको यदि आप गौरसे देखेंगेतो आपको इन पर काफी बारीक कलाकृति देखने को मिलेगी.
इनमे साह अकबर सानी द्वारा महाराज उदित नारायण सिंह को गिफ्ट में दिया गया नालकी भी है जिसपर एक टोपा बना हुआ है जैसे की आप मध्यकालीन इमारतों में देखते है. यह नालकी वर्ष १८२२ की निर्मित है यानी हमारे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के भी पहले की निर्मित वस्तु. निश्चय ही यह देखने को मिलेगा हमने सोचा भी नहीं था.
आगे बढ़ने पर हमे हौदा देखने को मिला. असल में हौदा एक विश्रामस्थल होता था. इनमे हाथी दांत का काफी अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया था.
कुछ हौदे में काफी सुन्दर सुन्दर जानवरोंकी आकृति भी बनायीं गयी थी जो हौदे की खूबसूरतीको और भी अधिक बढ़ा रही थी.इसके आलावा हाथी दांत का प्रयोग हमें पालकी पर भी देखने को मिला. कुछ एक हौदों पर हमे खूबसूरत पेंटिंग्स भी दिखलाई पड़ी जो कही ना कही उस समय के गौरवशाली इतिहास को उजागर करती है.
इस हौदे के बीचो-बीच हमें एक राजकीय चिन्ह दिखलाई पड़ा जिसपर लिखा था – सत्यान्नास्ति परो धर्मः जिसका अर्थ होता है की सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं वेद से बड़ा कोई शास्त्र नहीं माता के समान कोई गुरु नहीं.
अच्छा इन सबके आलावा एक जगह हमें हाथी को पहनाये जाने वाले आभूषण जैसे की हाथी के गले का आभूषण जिसे हैकल कहते है इसके आलावा हाथी का मुकुट एवं हाथी के पूँछ का भी आभूषण जिसे दुमची के नाम से जाना जाता है को भी देखने का अवसर मिला.
आज के पहले मैंने कभी भी हाथी के आभूषणों को खुद इतने करीब से नहीं देखा था. संभवतः आपने भी नहीं देखा होगा. यदि आपने देखा होगा जो कमेंन्ट में जरूर अपना अनुभव बताये.
हौदे एवं पालकी के बाद अब बारी आती है राजघराने में प्रयोग होने वाले वस्त्रों की. दोस्तों कुछ वस्त्र तो इतने खस्ता हालात में है की बस खत्म ही है. इन वस्त्रों के लिए अलग से एक कमरे का प्रबंध किया गया है जो की कबीले तारीफ है.
यहाँ आपको बनारसी शैली में धुलाई नामक एक वस्त्र दिखलाई देगा जिसे १९ वी शताब्दी में बनाया गया था.इसके आलावा खेस चादर जिसे मराठी शैली में निर्मित किया गया था कुछ टोपी जो की नेहरू शैली एवं कश्मीरी शैली में निर्मित है साथ ही राजघराने में प्रयोग होने वाले जूती इत्यादि देखने को मिलेगा.
आगे बढ़ने पर हमें एक खूबसूरत मूर्ति दिखलाई पड़ी जिसमे भगवान् श्रीकृष्ण एवं राधा रानी जी आम के पेड़ पर झूला झूल रहे है इस आम के पेड़ पर ढेर सारे आम लटके पड़े है. इस मूर्ति को जिस खूबसूरती के साथ तराशा गया है वो वाकई काबिले तारीफ है.
एक जगह हमें कुछ पुराने वाद्ययंत्र दिखलाई पड़े जिस पर अच्छी खासी धूल जमा थी. इन वाद्ययंत्रों में मृदंग हारमोनियम तानपुरा रूद्र वीणा सितार एवं इसके आलावा उस समय में प्रयोग होने वाला टेप या जिसे हम संभवतः रेडिओ भी कहते है दिखलाई दिया.
अच्छा एक बात और यदि आपको प्यास लगी हो तो यहाँ पर ठन्डे पानी का भी इंतज़ाम किया गया है. जो की मुझे एक पर्यटक के रूप में अच्छा लगा साथ ही यहाँ जगह जगह पर कूड़ेदान भी इंतज़ाम किया गया है. यह व्यवस्था आपको कपड़े वाले कमरे से निकलते वक्त ही दिखाई देगा.
यहाँ हमने थोड़े देर विश्राम किया और पानी पिया. थोड़े देर विश्राम के बाद अब हम राजघराने द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले असलहे यानी की हथियारों को देखने चले.
यहाँ आपको बंदूकों के साथ साथ तीर धनुष तलवारे भाले बरछे इत्यादि देखने को मिलेंगे. यहाँ कुछ इतने दुर्लभ बंदूके है जिन्हे आपने शायद ही देखा होगा. इन बंदूकों को देखकर हमें फिर हेरे फेरी का वह दृश्य याद आ गया जहां इन दुर्लभ बधूको का सौदा किया गया था.
कुछ बदुँके इतने छोटे थे की जैसे हथेली में समां जाये तो कुछ बंदूके इतनी लगभग ६ से ७ फीट लम्बी थी. इन बंदूकों में सबसे अनोखी बात हमें यह लगी की यहाँ एक मुख वाली बदूक के साथ साथ ४ मुख वाली बन्दुक भी रखी हुए थी.
चारमुख वाली बन्दुक के बारे मे तो मैंने आज तक नहीं सुना था और आज देख भी लिया. वाकई ये एक अद्भुत क्षण था.
कुछ तलवारों के मुठिया पर खूबसूरती के साथ जंगली जानवरों जैसे की शेर इत्यादि की कलाकृति बनायीं गयी थी. इसके आलावा हमें यहाँ पर अफ्रीकन तलवारे, बर्मा जिसे हम म्यांमारके नाम से जानतेहै वहा के कुछ हथियार एवं जापान के भी हथियार देखने को मिले.
दोस्तों रामनगर किले में यूँ तो अनेकों दुर्लभ चीजे रखी हुयी है लेकिन यदि इन्हे प्रॉपर तरीके से रिस्टोर नहीं किया गया तो मुझे नहीं लगता है की ये चीजे जायदा दिन तक टिक भी पाएगी. पिछले आर्टिकल में हमने भारत कला म्यूजियम BHU को देखने के लिए गए थे. इस म्यूजियम में भी बहुत सी चीजों को रेस्टोर करने के लिए प्रयास किया जा रहा था.
रामनगर किले में आयोजन [Events at Ramnagar fort]
प्रतिवर्ष अक्टूबर महीने में दशहरा के शुभ अवसर रामलीला का आयोजन किया जाता है. यह आयोजन लगभग एक महीना चलता है इस दौरान राजघराने से सबंधित लोगों के सम्मिलित होने पर रामनगर किले की रौनक और भी बढ़ जाती है.
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बनारस के अन्य दर्शनीय स्थल [Tourist place in Varanasi]
यूँ तो पूरा बनारस ही अपने आप में पर्यटन है लेकिन यदि आपके पास समय की कमी है तो आप इन स्थानों पर जरूर जाएँ. ये स्थान विशेष आपको बनारस के प्रति समझ विकसित करने में काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे.
अस्सी घाट | भारत माता मंदिर |
दशाश्वमेध घाट | मान मंदिर घाट |
रामनगर फोर्ट | भारत कला म्यूजियम बी.एच.यु |
सारनाथ स्थित बुद्ध मंदिर | गंगा महल |
मणिकर्णिका घाट | संत रविदास पार्क |
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रामनगर किले का पता [Ramnagar for map]
निष्कर्ष [Conclusion]
यूँ तो रामनगर का किला अपनी प्राचीन धरोहर को समेत कर रखे हुए है लेकिन इन धरोहरों को संभल कर रखना शायद म्यूजियम वाले भूल चुके है. उनका सिर्फ और सिर्फ ध्यान टिकट काउंटर पर ही लगता है.
म्यूजियम में सफाई के नाम पर हमें सिर्फ गाड़ियों पर धूल ही दिखाई दी. इसके आलावा प्रॉपर लाइटिंग न होने की वजहसे सम्भवताह हमने कुछ बारीक चीजे भी नहीं देख पाएं.
एक चीज जो हमें सबसे अच्छी लगी और वो थी डस्टबीन की व्यवस्था इसके आलावा आपको पानी पीने की भी प्रॉपर व्यवस्था मिलेगी. जो की किसी भी पर्यटक केलिए सबसे जरुरी है.
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सवाल जवाब [Some FAQ]
1742 में राजा मंशाराम द्वारा रामनगर की स्थापना की गयी थी
हाथ से खींचकर ले जाने वाली गाडी
इस श्लोक का अर्थ होता है की सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं वेद से बड़ा कोई शास्त्र नहीं माता के समान कोई गुरु नहीं.
BHU में
छोटे बच्चो के लिए 20 रूपये वही कक्षा 10 के विद्यार्थियों के लिए निशुल्क प्रवेश है. बड़ो के लिए 75 रूपये एवं यदि कोई विदेशी है तो 150 रूपये प्रवेश शुल्क लगता है.
यह किला रामनगर में स्थित है. यह बिलकुल माँ गंगा के किनारे पर ही स्थित है तथा दूर से ही दिखलाई पड़ जाता है.
इस किले में आपको राजघराने द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले कई वाहन हौदे पालकी कपडे तथा उनके द्वारा इस्तेमाल में लायी गयी बंदूके इत्यादि चीजों का कलेक्शन है.
हाँ