नाहरगढ़ किले का इतिहास और उसकी वास्तुकला | Nahargarh Fort

राजस्थान का जयपुर शहर पर्यटन की दृस्टि से काफी महत्वपूर्ण है। ना सिर्फ यह शहर बल्कि पूरा राजस्थान राज्य ही अपने पर्यटन के लिए लोगों के बीच में काफी प्रसिद्ध है।

जयपुर शहर को पिंक सिटी या गुलाबी शहर के नाम से जाना जाता है। इस शहर में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक स्थल है जो कही ना कही उस समय के राजे-महाराजे की वीर गाथाओं को सुनाते है।

तो दोस्तों आज हम जयपुर स्थित नाहरगढ़ के किले को करीब से देखने चलेंगे। उम्मीद है आपको पसंद आएगा।

नाहरगढ़ का किला कहाँ पर स्थित है ? Nahargarh fort in hindi

नाहरगढ़ का किला राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित है। यह किला राजस्थान के कछवाहा राजवंश का प्रतिनिधित्व करता है।

Nahargarh Fort- Rajasthan | जाने नाहरगढ़ किले का इतिहास

इस किले का प्राचीन नाम सुदर्शनगढ़ था बाद में इसका नाम बदलकर नाहरगढ़ किला रखा गया था।

इस किले को सवाई राजा जयसिंह ने बनवाया था।

सवाई जयसिंह को उनकी बुद्धिमत्ता और विज्ञान के प्रति लगाव को देखकर ही उन्हें ओरंगजेब ने उन्हें सवाई की उपाधि दी थी।

नाहरगढ़ किला अपने विशेष प्रकार की किलेबंदी की वजह से जयगढ़ के किले से जुड़ा हुआ है।

नाहर का अर्थ होता है शेर और गढ़ का अर्थ होता है किला या जगह, इस प्रकार नाहरगढ़ का अर्थ होता है शेर का किला

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कौन थे सवाई राजा जयसिंह [who was sawai jai singh]

सवाई राजा जयसिंह, कछवाहा राजवंश के राजा थे। इनके पिता का नाम विष्णु कुमार और माता का नाम इंद्रकुंवर था। वर्ष 1756 में ये आमेर की राजगद्दी पर बैठे।

ये अपने वंश में सबसे वीर और सबसे प्रतापी राजा होने के साथ बुद्धिमत्ता में भी अपने समकालीन राजाओ से आगे रहे थे।

इनका मूल नाम जयसिंह था लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और चतुराई को देखकर औरंगजेब ने उन्हें उनके मंत्री मिर्ज़ा राजा जयसिंह से ज्यादा योग्य अर्थात सवाया मानकर सवाई जय सिंह का नाम दिया था।

उनके राज्यारोहण के समय उनके राज्य आमेर की स्थित अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने अपने आतंरिक मामलों को बेहद चतुराई से संभाला और अपने उसे सुदृण बनाया।

इसके साथ साथ उन्होंने अपने सैनिक व्यवस्था पर भी अच्छा ध्यान दिया ताकि आक्रमण के समय उनके सैनिक और भी निर्भयता से युद्ध कर पाएं।

सवाई जयसिंह अंतिम हिन्दू राजा थे जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया था।

चूँकि उस समय मराठा शक्ति बड़े ही तीव्र गति से अपना साम्राज्य विस्तार कर रही थी और उन्होंने समूचे भारत को मराठा झंडे के नीचे ला खड़ा किया था।

ऐसी स्थित में यदि राजपूत राज एक जुट ना होते तो उनके राज्य भी इन मराठा योद्धाओं के हाथों भेट चढ़ जाते इसलिए उन्होंने मेवाड़ के तत्कालीन राजा संग्राम सिंह से मिलकर राजपूत राजाओं का एक सम्मलेन किया जिसका मूल उद्देश्य सामूहिक शक्ति के जरिये मराठा आक्रांताओं से निजाद पाना।

इसके आलावा उन्होंने कला और विज्ञान के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया।

इसके लिए उन्होंने वर्ष 1727 में जयपुर नगर की [ जो की आज राजस्थान की राजधानी के रूप में हम सभी जानते है ] स्थापना की और इसे नगर को विज्ञान और कला का महान केंद्र के रूप में स्थापित किया।

असल में जयपुर के निर्माण में जिस कारीगर या वास्तुकार का सबसे ज्यादा योगदान था उसका नाम था- विद्याधार।

सवाई जयसिंह जी ने ” जिज मुहम्मदशाही “ नामक एक ग्रहों से संबधित एक पुस्तक लिखी थी।

इसके आलावा यूक्लिड के प्रसिद्ध पुस्तक ज्योमेट्री, त्रिकोणमिति और जॉन नेपियर के पुस्तक लागरिथम का संस्कृत भाषा में अनुवाद कराया और लोगों के बीच में विज्ञान के महत्व को साझा किया।

इसके आलावा उन्होंने जयसिंह कारिका नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ लिखा। वह स्वयं संस्कृत फ़ारसी गणित और ज्योतिष विद्या के प्रकांड विद्वान थे।

वह एक खगोलीय वैज्ञानिक या जिसे हम Celestial Scientist के नाम से भी जानते है।

सवाई जय सिंह जी ने खगोलीय गतिविधियों में रूचि दिखते हुए उन्होंने एक ऐसी ईमारत बनाए की सोची जिनमे अपने यंत्रो के माध्यम से खगोलीय घटनाओ जैसे तारे और ग्रहो नक्षत्रों की गतिविधियों की गणना या रिकॉर्ड कर सके।

इसलिए उन्होंने पुरे भारतवर्ष और विश्व से इस दिशा में काम करने वाले वैज्ञानिको और विद्वानों को निमंत्रण भेजा और अपने पास सम्मानपूर्वक उनको रखा।

इसी दिशा में कार्य करते हुए उन्होंने सन 1724 से 1734 यानि लगभग 10 सालों में उन्होंने 5 इमारते बनवायी जो खगोलीय और ज्योतिष का अध्ययन कर सकें।

इन पांच इमारतों का नाम भी जंतर मंतर ही है। ये अलग-अलग राज्यों में स्थित है।

जंतर मंतर को अलग अलग राज्यों के बीच बनाने का एक ही उद्देश्य था की उनके द्वारा की गयी खगोलीय गणना और ज्योतिषशास्त्र में कोई त्रुटि या गलती न रह जाये।

ये इमारते दिल्ली, वाराणसी, उज्जैन, जयपुर और मथुरा में स्थित है। यदि आप जंतर-मंतर के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो आप इस पोस्ट को जरूर पढ़ें

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नाहरगढ़ किला जयपुर का इतिहास [nahargarh fort ranthambore]

नाहरगढ़ किले का निर्माण वर्ष 1734 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा किया गया था।

यह किला अरावली पर्वत श्रृंखला के अंतिम छोर पर स्थित है।

नाहरगढ़ का किले अपने विशेष किलेबंदी के कारण जयगढ़ के किले से जुड़ा हुआ है।

इस किले के बारे में एक रोचक कहानी है- कहा जाता है की इस महल को बनाने के लिए जयसिंह जी द्वारा बहुत प्रयास किया गया लेकिन एक नाहर सिंह भोमिया नामक राजपूत की प्रेतात्मा इसे बनाने में बाधा डालती थी।

Nahargarh Fort- Rajasthan | जाने नाहरगढ़ किले का इतिहास

तब राजा जी ने अपनी कुलगुरु से इस समस्या का समाधान माँगा, इसपर कुलगुरु ने उन्हें इस किले के अंदर एक मंदिर की स्थापना और उसका नाम नाहर रखने का सुझाव दियाऔर राजा जी ने वही किया।

इस वजह से इस महल का नाम नाहरगढ़ पड़ा।

वर्ष 1868 में इस किले की मरम्मत करवाने और इसे फिर से वापस उसी रूप में लाने का श्रेय सवाई राम सिंह और सवाई माधों सिंह जी को जाता है।

उन्होंने इस किले के भीतरी हिस्सों में अन्य भवनों का निर्माण कराया।

इन्ही भवनों में सवाई राम सिंह जी द्वारा नौ रानियों के लिए अलग अलग कमरों का निर्माण भी शामिल था।

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नाहरगढ़ किले पर युद्ध [nahargarh fort ranthambore]

दोस्तों नाहरगह का किला भारत का एकमात्र ऐसा किला रहा है जिस पर कभी भी किसी राजा ने युद्ध करने की हिम्मत नहीं दिखाई। यानी की यह किला अजेय रहा है।

लेकिन इसने कई ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं को देखा है जिसने पुरे भारत की दिशा और दशा भी बाद दी थी।

वर्ष 1857 की क्रांति के दौरान इसी नाहरगढ़ के किले में ब्रिटिश रेजिमेंट के परिवारों को जगह दी गयी थी, ताकि वह देश में चला रहे क्रांतिकारी घटनाओ से अपनी जान बचा पाएं, और सफल भी हुए थे।

नाहरगढ़ किले की स्थापत्यकला [Nahargarh fort architecture]

नाहरगढ़ के किले को राजपुताना शैली में बनाया गया था। इस किले में माधवेन्द्र भवन नाम का एक खास कमरा था जिसे सिर्फ और सिर्फ राजा ही उपयोग करते थे।

इसके आलावा इस किले में रानियों के रहने के लिए कई महलों का निर्माण किया था।

इस किले के अंदर हमें कई कमरे दखने को मिलते है-

  • जयपुर के देवता को समर्पित एक मंदिर
  • राजपूत नहर भोमिया को समर्पित एक मंदिर
  • माधवेन्द्र भवन
  • सभा कक्ष

महल की दीवारों पर भित्तिचित्रों का प्रयोग हमें देखने को मिलता है। वही इसके दरवाजे और खिड़कियां हमें उस समय की महान तजुर्बेदार कार्यों को बतलाती है।

खुलने का समय- यह महल सुबह 10 बजे से शाम के 5 बजे तक खुला रहता है। इसके बाद इस किले में किसी भी पर्यटक को रुकने नहीं दिया जाता है।

क्यूंकि नाहरगढ़ एक बृहद जंगल से घिरा हुआ है जिसमे जंगली जानवरों का निवास स्थल है। इस जंगल को नाहरगढ़ जैविक पार्क के नाम से भी जाना जाता है।

प्रवेश शुल्क– भारतीय पर्यटकों के लिए 50 रूपये और विदेशी पर्यटकों के लिए 200 रूपये प्रवेश शुल्क को निर्धारित किया गया है।

वही यदि आप एक भारतीय विद्यार्थी है तो यह शुल्क 20 रूपये और विदेशी छात्र है तो यह प्रवेश शुल्क 50 रूपये निर्धारित किया गया है।

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नाहरगढ़ किले के कुछ प्रमुख तथ्य [Nahargarh fort fact]

  • वर्ष 1734 में नाहरगढ़ किले का निर्माण कछवाहा राजवंश के शासक सवाई राजा जय सिंह ने करवाया था.
  • इस किले के अंदर माधवेन्द्र भवन का इस्तेमाल स्वय राजा सवाई जयसिंह द्वारा किया जाता था.
  • 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई यूरोपीय लोगों को इसी महल में शरण दी गयी थी.
  • इस किले की भव्यता और खूबसूरती का अंदाजा आप इस प्रकार लगा सकते है की यहाँ पर कई बॉलीवुड की फिल्मों की शूटिंग की गयी है. जो इस प्रकार से है- शुद्धदेशी रोमांस रंग दे बसंती और जोधा अकबर इत्यादि
  • जैसा की ज्यादातर किलों का निर्माण रक्षा के तौर पर किया जाता रहा है उसी प्रकार नाहरगढ़ का किला भी अपने शत्रुओं से बचाव के लिए बनाया गया था. लेकिन इस किले पर कभी भी कोई युद्ध नहीं हुआ.

नाहरगढ़ किले के आस-पास के पर्यटन स्थल कौन कौन से है ? [Place to visit in jaipur]

नाहरगढ़ किले के आस पास घूमने लायक कई जगहे है। ज्यादातर पर्यटन स्थल प्राचीन और अपना एक जीवंत इतिहास समेटे हुए है। यह जगहे इस प्रकार है-

नाहरगढ़ किले की कुछ तस्वीरें [Nahargarh fort photo]

निष्कर्ष [Conclusion]

दोस्तों नाहरगढ़ के किले पर कभी भी कोई युद्ध नहीं हुआ है।

चूँकि युद्ध न होने की स्थिति में इसे जीतने का सवाल ही नहीं उठता है। यह किला कई ऐतिहासिक युद्धों और घटनाओ का जीता जगता गवाह रहा है।

इन किलो और महलो को जिस राजपुताना शैली में बनाया गया है वह आज भी इतिहासकारों और आम लोगों के बीच का आश्चर्य बना हुआ है।

दोस्तों यदि आप एक इतिहास के विद्यार्थी है या फिर अपने देश के बारे में जानना चाहते है , राजाओ के बारे में जानना चाहते है तो मेरा सुझाव है की इन जगहों पर जरूर जाएँ।

ये जगहें न सिर्फ आपका मनोरजन करेंगी बल्कि आप इन जगहों के बारे में जानकर प्राचीन राजाओं उनकी युद्धनीति और राजनीती से संबधित कितनी ही बातो को जान पाएंगे।

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नाहरगढ़ किले की लोकेशन [Nahargarh fort location, map]

सबसे महत्वपूर्ण बात [Most important things]

दोस्तों इन ऐतिहासिक इमारतों या पर्यटन स्थलों पर टिकट के पैसा, यात्रा अवधी जैसे छोटी चीज़ें बदलती रहती है।

इसलिए यदि आपको इनके बारे में पता है तो जरूर कमेंट में जरूर बताएं हम जल्द ही आपके द्वारा दी गयी जानकारी को अपडेट कर देंगे।

यदि इस पोस्ट में कुछ गलती रह गयी हो तो उसे कमेंट में जरूर बताएं।

धन्यवाद।

सवाल जवाब [FAQ]

1. नाहरगढ़ के किले का निर्माण किस राजा ने करवाया था ?

नाहरगढ़ किले का निर्माण वर्ष 1734 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा किया गया था।

2. DSLR या कैमरा के लिए कोई प्रतिबन्ध तो नहीं ना है ?

जी नहीं आप निश्चिन्त होकर आइये और फोटो खिंचवाइये।

3. मैंने सुना है की यहाँ पर भुत वगैरह रहते है क्या यह सच है ?

अरे भैया जी आप कौन सी दुनिया में जी रहे है। इस जगह पर यदि भुत प्रेत रहते तो लोग इस जगह पर घूमने ही क्यों आते समझ रहे है ना।

4. क्या नाहरगढ़ के किले की पर फिल्मे भी बनाई है ?

जी हाँ नाहरगढ़ किले के पर रंग दे बसंती शुद्ध देशी रोमांस और जोधा अकबर जैसी फिल्मे बनी है।

5. किले में प्रवेश के लिए शुल्क क्या है ?

भारतीय पर्यटकों के लिए 50 रूपये और विदेशी पर्यटकों के लिए 200 रूपये प्रवेश शुल्क को निर्धारित किया गया है।

वही यदि आप एक भारतीय विद्यार्थी है तो यह शुल्क 20 रूपये और विदेशी छात्र है तो यह प्रवेश शुल्क 50 रूपये निर्धारित किया गया है।

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