1. क़ुतुब मीनार कहाँ पर स्थित है ? [Where is Kutub minar located]
क़ुतुब मीनार भारत देश की राजधानी दिल्ली में स्थित है। यह भारतवर्ष की सबसे ऊँची लम्बी मीनार है।
क़ुतुब मीनार की स्थापना का श्रेय कुतुबुद्दीन ऐबक की दिया जाता है।
लेकिन इसे पूर्ण करने का श्रेय कुतुबुद्दीन के दामाद इल्तुतमिश को जाता है। इल्तुतमिश द्वारा इस मीनार को 1310 में पूर्ण करवाया था।
इस ईमारत का प्रयोग अल्लाह की अजान देने के लिए किया गया था।
यह मीनार कुल 5 मंजिलो से मिलकर बनी है। जहाँ पर पहली मंजिल का प्रयोग ही अजान के लिए किया जाता था वही बाकी के तीन मंजिल इल्तुतमिश ने बनवाया था।
वर्ष 1368 में फ़िरोजशाज तुग़लक़ द्वारा इस मीनार का 5 वां और अंतिम मंजिल का निर्माण करवाया गया था।
यह ईमारत 72.5 मीटर ऊँचा है वही इसकी चौड़ाई 14.32 मीटर है।
यही पर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद, अलाउद्दीन खिलजी तथा इमाम जामिन का मकबरा, अलाई मीनार और लौह स्तम्भ जैसे ऐतिहासिक स्थल भी है। जिनका इतिहास और वर्त्तमान दोनों ही खास है।
2. क़ुतुब मीनार का इतिहास [Qutub minar History in Hindi]
दिल्ली स्थित कुतुबमीनार की स्थापना का श्रेय कुतुबुद्दीन ऐबक को जाता है।
कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गोरी का एक गुलाम था। मोहम्मद गोरी द्वारा तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान से विजयी होने के पश्चात भारत में उसने राज करना प्रारंभ किया।
परन्तु भारत की प्रतिकूल परिस्थितियां ने उसे कभी भी भारतवर्ष में पाँव ज़माने का अवसर नहीं दिया था।
वही उसके भारत छोड़कर जाने के बाद उसका एक गुलाम जिसे हम कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम से भी जानते है, उसे भारत की राजगद्दी सौपकर चला गया।
चूँकि कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गोरी का गुलाम था अतः उसके द्वारा चलाये गए वंश को हम गुलाम या मामलुक वंश के नाम से जानते है।
तो आइये जानते है कौन था कुतुबुद्दीन ऐबक ?
2.1 कौन था कुतुबुद्दीन ऐबक ? [who was Qutb al-Din Aibak?]
दिल्ली का पहला तुर्क शासक था कुतुबुद्दीन। उसने भारतवर्ष का सिंहासन अपने स्वामी मोहम्मद गोरी द्वारा प्राप्त किया था। कुतुबुद्दीन ऐबक एक तुर्क था।
उसके माता पिता तुर्किस्तान के निवासी थे। बचपन में उसे निशापुर के काजी द्वारा एक दस के रूप में उसे ख़रीदा गया था।
तुर्को में अपने गुलामो को योग्य बनाने की एक परंपरा थी जिस वजह से कुतुबुद्दीन ऐबक की उस काजी द्वारा सैनिक शिक्षा, कला और साहित्य का ज्ञान दिया गया था।
इसी ज्ञान ने उसे एक दिन भारत का सुलतान बना दिया था और उसे इतिहास में अमर कर दिया।
वही उसकी मृत्यु के पश्चात इल्तुतमिश जो की एक गुलाम था उसने भारत के सुल्तान का कार्यभार संभाला।
इसी इल्तुतमिश ने कुतुबमीनार के बचे हिस्सों निर्माण करवाकर उसे एक रूप प्रदान किया था।
3. क़ुतुब मीनार की स्थापत्य कला [Qutub minar architecture]
कुतुबमीनार के प्रत्येक मंजिलों के पश्चात एक घेरा बनाया गया है।
इन घेरों को बड़ी ही शालीनता और सुगमता के साथ बनाया गया था यह दिखने में बिलकुल मधुमक्खी के छत्ते जैसा दिखता है।
इसी प्रकार की एक ईमारत राजस्थान जिले में भी है। इस इमारत का नाम है – हवा महल।
क़ुतुब मीनार के उत्तर पूर्व में कुव्वत उल मस्जिद है। इसका निर्माण कुतुबुद्दीन द्वारा 1198 में की गयी थी।
पुरातन शिला लेखों से पता चलता है की इस जगह पर पहले हिन्दू और जैन धर्म के मंदिर थे जिन्हे नष्ट करके यहाँ पर इस मीनार की स्थापना की गयी थी।
इसी मीनार के प्रांगण में हमें मौर्य वंशीय लौह स्तम्भ मिलता है।
इस लौह स्तम्भ के बारे में खा जाता है की यह स्तम्भ में आज तक जंग नहीं लगा है। जो की मौर्या वंशीय राजाओ की बुद्धिमत्त्ता और विज्ञानं के प्रति लगाव को दर्शाती है।
कुतुबुद्दीन ने इस मीनार को बनाने के लिए लाल बलुई पत्थर का प्रयोग किया गया था तथा इस पर कुरान की आयतो को लिखा गया है।
हम देखते है की पुरे मध्यकालीन भारत में जितने भी इमारतें बानी है सभी में लाल बलुई पत्थर का प्रयोग किया गया था।
हालांकि इस इमारत के बारे में कई सच्चाईयां और भी है जिन्हे मैं आपके सामने पुरे तर्क वितर्क के साथ जल्द ही अपडेट करूँगा।
पर क्या आप बता सकते है की क्यों पुरानी इमारतों में इन बलुई पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था ? comment section में जरूर बताये।
इस ईमारत को सजाने में ज्यामितीय आकृतियाँ और विभिन्न पैटर्न इत्यादि की मदद ली गयी है।
वर्ष 1993 में UNESCO द्वारा क़ुतुब मीनार को भारत के विश्व विरासत स्थल में जगह दी थी।
4. क़ुतुब मीनार के कुछ तथ्य [Facts about Qutub minar]
- क़ुतुब मीनार की स्थापना का श्रेय कुतुबुद्दीन को और वही इसे पूर्ण करवाने का श्रेय इल्तुतमिश को जाता है.
- कुतुबमीनार की ऊंचाई है- 72.5 मीटर.
- वर्ष 1368 में यह इमारत छतिग्रस्त हो गयी थी जिसे तुग़लक़ वंश का शासक फ़िरोजशाज तुग़लक़ ने इसे बनवाया और कुतुबमीनार में एक और मंजिल बनवायी.
- पांच मंजिले बने इस मीनार का निर्माण लाल बलुई पत्थर से किया गया है.
- इस मीनार के पास ही में एक लौह स्तम्भ है. यह एक मौर्यकालीन स्तम्भ है जिस पर आज तक जंग नहीं लगा है.
- इस मीनार को यूनेस्को द्वारा 1993 में भारत के विश्व विरासत स्थल में जगह दी थी।