Sarnath Buddhist Temple | बौद्ध स्थल सारनाथ घूमने के बारे में पूरी जानकारी

1. बौद्ध स्थल सारनाथ [Buddhist Temple Saranth]

सारनाथ वाराणसी में स्थित एक बौद्ध स्थल (sarnath Buddhist Temple) है।

ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् यहीं पर महात्मा बुद्धा जी ने अपना प्रथम उपदेश दिया था , जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।

सारनाथ मंदिर (sarnath Buddhist Temple)सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था तथा यही पर अशोक स्तम्भ भी स्थित है।

अशोक स्तम्भ को भारत का राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में भी जाना जाता है।

सारंगनाथ महादेव की स्थापना के पश्चात इस जगह का नाम सारनाथ पड़ा। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष सावन का मेला लगता है।

12 वी सदी में तुर्की आक्रमणकारियों द्वारा सारनाथ के स्तम्भ को नष्ट कर दिया गया था ।

सारनाथ बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है.

  • सारनाथ
  • लुम्बिनी
  • बोधगया
  • कुशीनगर
सारनाथ म्यूजियम के खुलने का समय9 A.M
सारनाथ म्यूजियम के बंद होने का समय5 A.M

2. स्थान [Location]

सारनाथ ( Buddhist Temple) वाराणसी से 10 KM पूर्व की ओर स्थित है।

सारनाथ की loction है – google map / sarnath

3. इतिहास [History]

3.1 महात्मा बुद्ध [Mahatma Buddha]

महात्मा बुद्ध जी का जन्म 563 ईस्वी पूर्व में लुम्बिनी (नेपाल )में हुआ था।

इनका वंश इक्ष्वाकु वंश के नाम से जाना जाता था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन एवं माँ का नाम महामाया था।

महात्मा बुद्धा जी के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। इनके जन्म के सातवें दिन ही माता महामाया का देहावसान हो गया।

इनका लालन पालन इनकी मौसी यानि महारानी महामाया की छोटी बहन महाप्रजापति गौतमी ने किया।

29 वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा से हुआ था ।

विवाह के उपरांत इनका एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने राहुल रखा, लेकिन सिद्धार्थ का मन गृहस्थ जीवन में न लगाकर सन्यास धारण करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपना घर एवं राजपाट सब छोड़कर सत्य की खोज में निकल पड़े।

कई वर्षों के साधना एवं कठोर तपस्या के पश्चात् बोधगया (बिहार) में उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ और इसके बाद उन्होंने एक नए धर्म को सबके सामने लाया।

ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् सिद्धार्थ , महात्मा बुद्ध के नाम से प्रख्यात हो गए ।

3.2 सारनाथ का इतिहास [History of Sarnath]

सारनाथ का इतिहास अति प्राचीन है। सारनाथ के मंदिर (sarnath Buddhist Temple) स्तूप एवं विहार को बनाने का श्रेय तीन राजवंशों को जाता है।

  • मौर्या वंशीय सम्राट अशोक
  • कुषाण वंशीय कनिष्क
  • गुप्त वंश

सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म की उन्नति हुयी थी ।

अशोक ने ही सारनाथ में धर्मराजिका स्तूप धमेख स्तूप और सिंह स्तूप / अशोक स्तम्भ की स्थापना करवाई थी।

कुषाण वंश की स्थापना के पश्चात् राजा कनिष्क ने भी बौद्ध धर्म को आगे बढ़ने में मदद की ।

कनिष्क के शासन काल में ही एक भिक्षु ने बोधिसत्व की प्रतिमा स्थापित की थी।

कनिष्क ने न केवल सारनाथ बल्कि पुरे भारतवर्ष में अनेक विहारों एवं स्तूपों का निर्माण करवाया था ।

ऐसा मन जाता है की सारनाथ का स्वर्णिम युग गुप्त समय में था। बंगाल के शासक महिपाल ने बौद्ध धर्म को आगे बढ़ाया ।

3.3 स्तूप [stup]

स्तूप शब्द संस्कृत एवं पाली भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है – ढेर

स्तूप एक प्रकार का गोलाकार संरचना होती है । इस प्रकार की संरचनाएं केवल बौद्ध धर्म में होती है।

इन स्तूपों का इस्तेमाल बौद्ध अवशेषों , समाधी को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता था।

4. आइये सैर करें [Lets take a walk]

हमारी यात्रा शुरू होती है कैंट रेलवे स्टेशन से । स्टेशन से आप ऑटो या कार से सारनाथ के लिए जा सकते है ।

सारनाथ पहुंचने पर यदि आप कार या बाइक से है तो आपको पार्किंग की सुविधा भी मिलेगी।

कोरोना की वजह से पर्यटन क्षेत्र को काफी हानि पहुंची थी ।

हमारी यात्रा कोरोना काल में हुयी थी इस वजह से ज्यादातर जगह सुरक्षा को देखते हुए बंद थे ।

हमे थोड़ी निराशा भी हुयी पर कोई बात नहीं एक बात अच्छी थी की कम से कम सारनाथ खुला था।

Entry गेट पर यदि आप मास्क नहीं पहने है तो आपको अंदर जाने नहीं दिया जायेगा आपको मास्क लगाना जरुरी है ।

गेट से एंट्री के बाद सामने ही महात्मा बुद्ध जी की एक और मूर्ति स्थापित है , जिनके पीछे शेषनाग ने बुद्धा जी के ऊपर छाया कर रखी है जैसे की हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण या भगवन विष्णु ।

मंदिर परिसर में ही Laughing Budhha भी मिलेंगे । और हाँ थोड़ी ही दुरी पर मंदिर(sarnath Buddhist Temple) स्थित है जो की काफी प्राचीन है।

मंदिर से आगे बढ़ने पर हम Museum की तरफ बढ़े पर हमे Entry नहीं करने दिया क्योकि हमने Online Ticket नहीं लिया था ।

यदि आप भी सारनाथ Museum देखना चाहते हो तो Online Ticket की व्यवस्था है ।

कोरोना काल में Offline Ticket नहीं मिल रहा है यह टिकट सारनाथ के official  वेबसाइट पर मिलेगी ।

खैर आगे बढ़ने पर हम सारनाथ का सबसे Famous Architect को देखने पहुंचे इसका नाम है – सारनाथ स्तूप

4.1 सारनाथ स्तूप [Sarnath stupa]

सारनाथ स्थित इस स्तूप को धमेख स्तूप या धर्मचक्र स्तूप के नाम से भी जाना जाता है।

प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता कनिघम ने इस स्तूप को खोजा था । इसपर पाली भाषा में ये “धर्महेतु प्रभवा” अंकित था।

कनिघम ने धमेख शब्द संस्कृत भाषा के धर्मोपदेशक का संक्षिप्त रूप माना है।

ऐसा भी माना जाता है की महात्मा बुद्धा जी अपना सबसे पहले उपदेश यही पर दिया था। इस वजह से इसका नाम धमेख पड़ा ।

4.2 Dhamekh Stupa Architecture & History | धमेख स्तूप

धमेख स्तूप एक गोलाकार स्तूप है । इसकी ऊंचाई ( Height ) है – 93 फुट

इस स्तूप पर काफी सारी सुन्दर कलाकृतियां बनायीं गयी है। इस पर मुख्यतया फूल पत्ती एवं स्वास्तिक जैसी अन्य चीज़ो की आकृति उकेरी गयी है।

यह स्तूप गुप्तकाल के समय में पूर्ण किया गया था . गुप्ता काल के शिल्पकारों ने इस पर वल्लरी प्रधान कलाकृतियां बनायीं है ।

इस स्तूप की नीव चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने रखी थी पर इसका पूर्ण विकास गुप्तकाल के समय में हुआ।

धमेख स्तूप से आगे बढ़ने पर हम एक और मंदिर (sarnath Buddhist Temple) में गए जो की अन्य की भांति काफी प्राचीन था इस मंदिर में विभिन्न प्रकार की Paintings बनी हुयी थी जो की महात्मा बुद्ध एवं उनके अनुयायिओं की थी ।

इस मंदिर के महंत का स्वभाव हमें काफी अच्छा लगा।

मंदिर परिसर में प्रवेश करने से पहले यदि आप चमड़े की कोई वस्तु जैसे पर्स , बेल्ट (Purse & Belt ) इत्यादि चीजे बाहर निकाल कर ही अंदर आपको प्रवेश मिल सकता है।

यह मंदिर भी अन्य मंदिरों की तरह काफी अलग थी actually पूरा सारनाथ ही अपने आप में अनोखा है।

यह मंदिर धमेख स्तूप के पास ही में स्थित है एवं बड़े से बरगद के वृक्ष के पास है ।

इस वृक्ष के पास ही में एक और महात्मा बुद्धा जी की प्रतिमा बन रही है । हम जब यहाँ पर पहुंचे थे तब तो इस मूर्ति का कार्य चल रहा था शायद कुछ सप्ताह बाद पूरा बन जाये।

4.3 चौखंडी स्तूप [Chaukhandi Stup]

मंदिर में दर्शन करने के पश्चात् हम आगे बढे । कुछ ही दुरी पर हमें एक और स्तूप देखने को मिला इस स्तूप का नाम है – चौखंडी स्तूप ( Chaukhandi Stup )

यह स्तूप सारनाथ के अन्य Architecture में से एक है । इस स्थान पर ही सर्वप्रथम महात्मा बुद्धा जी ने अपने 5 शिष्यों को उपदेश सुनाया था।

इस स्तूप के बारे में प्रसिद्ध यात्री ह्वेनसांग द्वारा भी उल्लेख मिलता है ।

चौखंडी स्तूप के उत्तरी दरवाजे पर एक प्रसंग मिलता है। इसके अनुसार टोडरमल (अकबर के दरबार के भूमि लेख जोख मंत्री ) के पुत्र गोवर्धन द्वारा इसका 1589 में कुछ भागों का पुनर्निर्माण करवाया था ।

एक और प्रसंग के अनुसार हुमायूँ ( मुग़ल वंश) ने इसी स्थान पर अपने दुश्मनो से बचते हुए एक रात बिताया था । इसी की याद में हुमायूँ ने इस बुर्जे का निर्माण करवाया था।

4.4 चौखंडी स्तूप [Chaukhandi stup architecture & History]

चौखंडी स्तूप में रखे समाधी चिन्हो की खोज भी कनिघम ने 18360 में की थी। उनका मानना था की शायद यहाँ कोई महात्मा बुद्धा की कोई पहचान मिल जाये , पर ऐसा संभव न हो सका ।

कनिघम को शुरुआत में कोई भी सफलता नहीं मिली । लेकिन बाद में 1905 ओरेटल (Another Historian and Archeologist) ने इस स्थान की खुदाई में कुछ मूर्तियां स्तूप की चौकी और चबूतरा मिली ।

चौखंडी स्तूप के बारे में Historians बताते है की इसका Architecture एक चौकोर कुर्सी जैसा ठोस ईटों से बानी तीन मंजिला बनी गयी थी।

इसकी सबसे ऊपरी सतह यानि छत पर कोई मूर्ति रखी गयी थी । गुप्तकाल में इस प्रकार के स्तूपों को त्रिमेधि स्तूप कहा जाता था

इस स्थान की जाँच पड़ताल के पश्चात यह बात सामने आयी की इस स्तूप का निर्माण गुप्त काल में हो चूका था ।  

4.5 धर्मराजिका स्तूप [Dharmrajika stupa]

चौखंडी स्तूप के पश्चात् हमारा ध्यान एक और स्तूप पर पड़ा जिसे धर्मराजिका स्तूप के नाम से जाना जाता है।

इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था।

परन्तु सन 1794 में एक नया मोहल्ला बसने में इसका ज्यादातर हिस्सा ख़तम हो गया।

4.5 Dharmarajika stup architect and History |धर्मराजिका स्तूप

इस स्तूप का मूल भाग अशोक ने करवाया था तब उस समय इस स्तूप की Height थी 44 फुट 3 इंच

लेकिन समय के साथ साथ भारतवर्ष पर लगातार बाहरी आक्रमण होते रहे और यहाँ के मंदिर (sarnath Buddhist Temple) और मठ इनका शिकार होते रहे ।

लेकिन समय समय पर भारतीय राजाओ ने इस स्थान और इनके Architecture को संभाला कर रखा। इस स्तूप की खुदाई के दौरान दो मुर्तिया मिली.

  1. बोधिसत्व प्रतिमा |
  2. धर्मचक्रप्रवर्तन की मुद्रा में महात्मा बुद्ध की प्रतिमा |

4.6 Mulgandh kuti vihar | मूलगंध कुटी विहार

दोस्तों, धर्मराजिका स्तूप के बाद हम मूलगंध कुटी विहार की तरफ बढे।

यह स्तूप धर्मराजिका स्तूप के ठीक उत्तर दिशा में स्थित है। इसका निर्माण भी गुप्तकाल में हुआ था।

4.7 Mulgandh kuti vihar architect and History | मूलगंध कुटी विहार

मूलगंध कुटी विहार पर नक्कास की गयी है।

साथ ही इसके चारों तरफ मिटटी और चुने ( Limestone)की बनी बाहरी सतह भी अपने आप में अनोखी हैं।

इस मंदिर में चार प्रवेश द्वार है जिसमे एक मुख्य द्वार तथा तीन अन्य द्वार थे।

बाद में इस मंदिर की दीवारे कमजोर होने की स्थिति में इसकी सुरक्षा के लिए दक्षिण दिशा के तीनो द्वारों को बंद कर दिया गया था।

4.8 अशोक स्तम्भ [Lion capital of Ashok]

दोस्तों हमने कई विहार एवं स्तूपों का भ्रमण करते हुए अंत में अशोक स्तम्भ के पास पहुंचे।

ऐसा माना जाता है की इसकी स्थापना के समय इसकी ऊंचाई 55 फुट थी परन्तु आज (2021) के समय में इसकी ऊंचाई मात्रा 7 फुट 9 इंच रह गयी है वह भी अपूर्ण अवस्था में ।

अशोक स्तम्भ की ऊपरी हिस्सा सारनाथ संग्रहालय में रखा गया है। इस स्तम्भ पर तीन लेख मौजूद है और यह तीनो लेख अलग अलग समय के है।

प्रथम लेखअशोक कालीन एवं दंड का उल्लेख |
द्वितीय लेखकुषाण काल |
तृतीया लेखगुप्त काल सममितीय आचार्यों का उल्लेख |

4.9 सारनाथ चिड़ियाघर [Sarnath Dear Park mini zoo]

दोस्तों सारनाथ में मंदिरों (sarnath Buddhist Temple) एवं स्तूपों के अलावा एक चिड़ियाघर भी है जिसकी हालत बिलकुल ही ख़राब है।

यह चिड़ियाघर नाम का ही चिड़ियाघर है क्यूंकि यहाँ पर नाम मात्र के जानवर रखे गए है उनमे से कुछ की हालत बिलकुल ही ख़राब है।

सारनाथ में रखे गए जानवर इस प्रकार है –

  1. घड़ियाल GAVIALIS
  2. बजरी /बजरिगर पक्षी BAZARI BIRD
  3. लालमुनिया पक्षी LALMUNIYA
  4. लव बर्ड LOVE BIRDS
  5. जेब्रा फिंच ZEBRA FINCH
  6. काकाटील COCKTAIL
  7. सन पेराकीट / सन कोनोर पक्षी SUN PARAKIT SUN KONUR BIRD
  8. साही PORCUPINE
  9. बगुला
  10. सारस
  11. हिरन DEAR
  12. रंगीन मछलियां FISHES
  13. नीलगाय BLUE COW

5. स्थापत्य कला [Architecture]

सारनाथ में ज्यादातर मंदिर ( sarnath Buddhist Temple ) स्तूप एवं विहार अलग -अलग वंश के राजाओं द्वारा बनवाया गया था।

इस वजह से इनमे कुछ विभिन्नताएं भी मौजूद है ।

इन मंदिरों एवं स्तूपों में खासकर कई प्रकार की कलाकृतियां की गयी है कुछ पर तो नक्काशी की गयी है।

6. अनुभव [Experience]

हमारा अनुभव काफी शानदार रहा। सारनाथ आना हमारे लिए पूरी तरह रोमांचकारी रहा।

कोरोना की वजह से बाकी जगहों को नहीं जा सके उसके लिए खेद है ।

मेरी सलाह है की यदि आप सारनाथ की यात्रा पर निकले है तो आप गर्मी के दिनों में सफर का सलाह नहीं दूंगा

क्युकी सारनाथ शहर के बीचों -बीच रहने के कारण वातावरण काफी गर्म हो जाता है यदि आप जाना ही चाहते है तो आप सर्दियों के मौसम में जा सकते है ।

सारनाथ स्थित चिड़ियाघर की हालत बेहद ख़राब है यहाँ छोटी- छोटी नहरे बनायीं गयी है जिनमे पानी की कोई व्यवस्था नहीं है पक्षी बेचारे भगवान के सहारे जी रहे है।

इन जानवरों को देखने के लिए आपसे 10 Rs / व्यक्ति की Entry Fees ली जाती है।

यदि इन पैसों को इन जानवरों के ऊपर ईमानदारीपूर्वक खर्च किया जाये तो इनकी हालत में सुधार हो सकता है ।

दोस्तों सारनाथ परिसर में आपको कई बेसहारा बुजुर्ग मिल जायेंगे जो बेचारे दाने-दाने के मोहताज़ हो रहे है पता नहीं उनके बच्चे उन्हें इस हालत में कैसे छोड़ देते है।

दोस्तों please आप इनकी मदद जरूर करे । आप उन्हें पैसे ना दे बल्कि उन्ही पैसों से उन्हें भोजन खिला दे वह आपको भरपेट आशीर्वाद देंगे ।

सारनाथ परिसर में आपको आपको ढेर सारी दुकाने मिल जाएँगी।

इन दुकानों से आप सारनाथ की प्रसिद्ध चीजे जैसे की महात्मा बुद्धा की मूर्ति , अशोक स्तम्भ , एवं सारनाथ से Related पुस्तकें भी मिल जाएँगी।

दोस्तों सारनाथ परिवार के साथ घूमने लायक एक अच्छी जगह है।

खैर यह मेरा अनुभव रहा आप का अनुभव कैसा रहा comment  में जरूर बताये।धन्यवाद ।

7. कैसे पहुंचे [How to reach]

7.1 सड़क द्वारा By Road

वाराणसी शहर राष्ट्रीय राजमार्ग -2 से लगभग सभी छोटे एवं बड़े शहर एक दूसरे से जुड़े हुए है।

यदि आप बनारस में रहते है तो आप कैंट रेलवे स्टेशन से से चौकाघाट,वरुणा पुल , पांडेयपुर चौराहा होते हुए सारनाथ के लिए जा सकते है ।

ज्यादा जानकारी के लिए आप google  बाबा से संपर्क कर सकते है.

7.2 वायु मार्ग [By Air]

आप देश में कही पर भी रहते हो , वाराणसी आने के लिए आपको बाबतपुर हवाई अड्डे तक आना पड़ेगा ।

यहाँ से फिर बस या ऑटो से आप बनारस के लिए आ सकते है ।

बनारस आने के पश्चात आप कैंट रेलवे स्टेशन से से चौकाघाट,वरुणा पुल , पांडेयपुर चौराह होते हुए सारनाथ के लिए जा सकते है ।

Toll free no – 0542-2623060 एवं 0542-2622155

7.3 ट्रेन द्वारा [By Train]

सारनाथ (Sarnath Buddhist Temple) घूमने के लिए आपको सीधे वाराणसी जंक्शन ( cant railways station )पर आना होगा ।

वाराणसी जंक्शन लगभग सभी बड़े एवं छोटे शहरो एवं महानगर से जुड़ा हुआ है ।

वाराणसी जंक्शन पर आने के बाद आप ऑटो से सीधे सारनाथ आ जाइएगा ।

Ramnagar to saranath 13.4 km
Varanasi cantonment to sarnath 9 km
Babatpur (mangari) Airport to saranath distance 25 km

8. Hotels and lounge

दोस्तों यदि आप किसी अच्छे Hotel या lounge की तलाश में है तो आप कुछ जगह checkout  कर सकते है ।

1. Mohit Paying guest House
2. Mahamaya paying guest House
3. Mayur Paying Guest House
4. The Fern Residency Sarnath
5. Sristi shelter

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