Ramappa temple | रामप्पा मंदिर शामिल हुआ विश्व विरासत स्थल की सूचि में

प्राचीन भारत में एक से बढ़कर एक योद्धा हुए है जिन्होंने ना सिर्फ अपने बाहुबल से राज किया बल्कि अपने द्वारा कला और संस्कृति का भी विकास किया।

उनके द्वारा बनवाये गए विभिन्न स्मारकों ने ना सिर्फ भारतवर्ष को गौरवान्वित किया है बल्कि विदेशों में भी काफी नाम कमाया है फिर चाहे बात ताजमहल, कुतुबमीनार,की हो या फिर खजुराहों के मंदिर।

इन प्राचीन स्मारकों के जरिए उन राजाओं और राजवंशों ने अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया है।

25.07.2021 के दिन यूनेस्को ने भारतवर्ष में स्थित रामप्पा मंदिर (Ramappa temple) को विश्व विरासत स्थल के रूप में चुना है। यूनेस्को का इस समय 44 वन सत्र चल रहा है।

इससे पहले हमारे पास कुल 38 विश्व विरासत स्थल थे जिसमे से 30 cultural और 7 natural  प्रकार की थी और और एक दोनों की मिक्स थी यानी की यह स्थल कल्चरल एंड नेचुरल दोनों ही प्रकार की थी जिसे कंचनजंघा के नाम से हम सभी जानते है।

39th वां विश्व विरासत स्थल के रूप में रुद्रेश्वर मंदिर जिसे हम रामप्पा मंदिर के नाम से भी जानते है इसके साथ ही 40 वां विश्व विरासत स्थल धौलावीरा नामक जगह को जोड़ा गया है।

इस धौलावीरा स्थल में हड़प्पा सभ्यता से सम्बंधित साक्ष्य या प्रमाण प्राप्त हुए है

यूनेस्को द्वारा भारत की इन स्थलों को विश्व विरासत स्थल के रूप में चुनना वाकई यह पुरे भारत के लिए काफी गर्व की बात है।

तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम चलने वाले है रामप्पा मंदिर के दर्शन करने। तो तैयार हो जाइये।

1. रामप्पा मंदिर कहाँ है ? {Ramappa temple in hindi}

रामप्पा मंदिर (Ramappa temple) भारतवर्ष के तेलंगाना राज्य में स्थित है।

हनुमानकोंडा से लगभग 65 किलोमीटर दूर पालमपेट में स्थित यह मंदिर सनातन धर्म की ऐतिहासिक निशानी है जिसे काकतिया वंश के राजाओं द्वारा 13 वि शताब्दी में निर्मित किया गया था।

भगवान् शिव जी को समर्पित यह मंदिर करीब 800 साल पुराना है और आज भी उस काकतीय वंश की स्थापत्य कला को सम्बोधित कर रहा है।

2. रामप्पा मंदिर का इतिहास [Ramappa temple history]

रामप्पा मंदिर का निर्माण काकतिया वंश के प्रतापी शासक गणपति देव द्वारा किया गया था।

असल में इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक खूबसूरत कहानी है जिसे आप सभी को सुनना चाहिए।

एक बार गणपति देव जी के मन में एक मंदिर बनवाने का ख्याल आया इसके लिए उन्होंने अपने राज्य के सबसे काबिल वास्तुकार यानी architect को बुलाया। इस शिल्पकार का नाम था रामप्पा

रामप्पा ने इस मंदिर के निर्माण  के लिए दिन-रात एक कर दिया और अपने अथक प्रयास के बलबूते इस मंदिर को बनाने में 40 साल के लबे अंतराल के बाद इस मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ

इस मंदिर के पुरे होने पर गणपति राव स्वयं इसका निरिक्षण करने पहुंचे तो वो इस मंदिर की मंदिर की खूबसूरती और नक्काशी को देखकर इतने प्रभावित हुए की इस मंदिर का नाम उसी आर्किटेक्ट के नाम पर रख दिया।

यही मंदिर रामप्पा मंदिर या रामप्पागुड़ी के नाम से जाना गया। हालाँकि इस मंदिर को रुद्रेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

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3. रामप्पा मंदिर की स्थापत्य कला [Ramappa temple architecture]

इस मंदिर को बनाने के लिए सैंडबॉक्स तकनीक का प्रयोग किया गया था। इसके प्रवेशद्वार हो या फिर इसकी छतें हो सभी जगह बेहतरीन नक्काशी की गयी है।

इसके साथ ही साथ दीवारों पर प्रसिद्ध धर्मग्रन्थ महाभारत और रामायण की तस्वीरें भी इसकी दीवारों पर उकेरी गयी है जो बेहद शानदार दिखती है।

Ramappa temple | रामप्पा मंदिर शामिल हुआ विश्व विरासत स्थल की सूचि में

इसके स्तभों पर महीन कलाकारी की गयी है, जो इसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा बढ़ा देती है।

यह मंदिर लगभग 6 फिट ऊंचे चबूतरे के बाद ही शुरू होता है। उसके बाद इसे कुल 1000 स्तभों यानी पिलर्स के जरिये इसे मन्दिर के प्रांगण से जोड़ा गया है।

मंदिर में प्रवेश के लिए काफी ऊँचा और वृहद् गोपुरम बना हुआ है। यदि आप गोपुरम को नहीं समझ पा रहे है तो इसे इस प्रकार से समझिये की यह मंदिर का प्रवेश द्वारा होता है।

इस प्रकार की ज्यादातर संरचनाएं दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला में हमें देखने को मिलती है।

इस मंदिर में भगवान् शिव जी के साथ साथ भगवान् विष्णु और भगवान् सूर्य भी विराजमान है। इनकी उपस्थिति के कारण ही इस मंदिर को त्रिकुटल्यम कहा गया है।

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4. रामप्पा मंदिर का रहस्य [Ramappa temple mystery]

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की इसके निर्माण में लगे पत्थर पानी पर तैरते है।

इसकी सच्चाई जानने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग यानी की archaeological survey of India ने जब इसके बारे में रिसर्च की तो वो खुद भी हैरान हो गए क्यूंकि इन पत्थरों को इतनी बारीकी और कुशलता के साथ बनाया गया था की यह पानी पर भी तैर रहा था।

जब इसकी गहन जांच की गयी तो पता चला की इस मन्दिर को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए इनका प्रयोग किया गया था।

वजन में हलके होने के कारण यह मंदिर अपनी अस्तित्व को अभी तक बचाये रखा हुआ है।

वही इसके ज्यादातर समकालीन मंदिर या तो नष्ट हो चुके है या फिर इसी रास्ते पर है।

इस मंदिर को जिस तकनीक से बनाया गया था उसे सैंडबॉक्स तकनीक के नाम से जाना जाता है।

यदि इस मंदिर को आप किसी ऊंचाई वाले स्थान से देखेंगे तो आप पाएंगे की यह मंदिर एक तारे यानी star shape  platform की संरचना लिए हुए है।

जो की अपने आप में एक अनोखी कलाकृति को सम्बोधित करता है।

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4.1 यूनेस्को द्वारा स्थल चुनने का फायदा [Benefits to choosing a UNESCO site ]

  • यूनेस्को द्वारा किसी भी स्थल को चुनने पर उस स्थान और उस क्षेत्र का विकास संभव होने लगता है.
  • पर्यटन के क्षेत्र में वृद्धि होती है.
  • पर्यटन के क्षेत्र में वृद्धि होने पर वहां पर आय के साधन या रोजगार में वृद्धि होती है.
  • जब किसी भी स्थल को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में चुन लिया जाता है तब उस स्थान की हिफाजत खुद सरकार की हो जाती है. उस स्थान को सुरक्षित रखना एक जिम्मेदारी हो जाती है.

4.2 धौलावीरा विश्व विरासत की सूचि मे [Dholavira in the list of world heritage]

  • धौलावीरा को यूनेस्को द्वारा ४० वां विश्व विरासत स्थल के रूप में चुना गया है.
  • यह स्थल गुजरात के कच्छ नामक जिले में स्थित है.
  • इस स्थल पर हड़प्पा कालीन सभ्यता के प्रमाण मिलते है.
  • धौलावीरा में 1967 से लेकर 1968 तक जेपी जोशी के नेतृत्व में इसकी खुदाई की गयी थी.उसके बाद 1990 से लेकर 1991 तक RS विष्ठ द्वारा इस स्थल की फिर से खुदाई की गयी थी.
  • धौलावीरा में ही हमें जल संरक्षण के प्रमाण प्राप्त हुए है.
  • मासर और मानहार नामक दो नदियों के बीच में स्थित है यह धौलावीरा स्थल.
  • इस स्थल पर खुदाई में पता चला की यहाँ पर शहरों की तीन संरचनाये प्रचलित थी. निचला नगर दुर्ग का क्षेत्र इसके आलावा मध्यम नगर की व्यवस्था उपस्थित थी.

5. मंदिर से संबधित कुछ प्रमुख तथ्य [facts about temple ]

  • रामप्पा मंदिर का निर्माण काकतिया वंश के प्रतापी राजा गणपतिदेव द्वारा किया गया था.
  • इस प्रसिद्ध मंदिर में तीन प्रमुख देवताओं का वास है जिनमे भगवान् शिव जी के साथ साथ भगवान् विष्णु और सूर्यदेव जी भी सम्मिलित है. इसलिये इस मंदिर को त्रिकुटल्यम भी कहा जाता है.
  • इस मंदिर के निर्माण में सैंडबॉक्स तकनीक का प्रयोग किया गया है.
  • इस मंदिर के निर्माण में जिन पत्थरों का प्रयोग किया गया है वे इतने हल्के है की पानी पर भी आसानी से तैरते है.
  • ऊंचाई से देखने पर इस मंदिर की संरचना तारे जैसी दिखती है. जो भारत में शायद ही किसी इमारत में देखने को मिले

6. रामप्पा मंदिर की तस्वीरें [Ramappa temple photo]

7. कैसे पहुंचे [How to reach Ramappa temple]

नजदीकी रेलवे स्टेशन वारंगल रेलवे स्टेशन
नजदीकी हवाई अड्डावारंगल हवाई अड्डा

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8. सवाल जवाब [FAQ]

दोस्तों आप सभी के द्वारा रामप्पा मंदिर के बारे में कुछ सवाल पूछे गए है। जिनमे से कुछ को हमने इस आर्टिकल में सबमिट किया है।

उम्मीद है हमारे द्वारा दिए गए जवाबों से आप सभी संतुष्ट हो पाएंगे।

1. रामप्पा मदिर में दर्शन का समय क्या है ?

सुबह 6 बजे से शाम के 6 बजे तक

2. रामप्पा मंदिर का निर्माण किस राजा ने करवाया था ?

रामप्पा मंदिर का निर्माण काकतिया वंश के प्रतापी राजा गणपतिदेव द्वारा किया

3. रामप्पा मंदिर किस देवता को समर्पित है ?

रामप्पा मंदिर भगवान् शिव जी को समर्पित है।

4. क्या 10 वर्ष के बच्चों को जाने की अनुमति है ?

हाँ बिलकुल आप ले जा सकते है।

5. रामप्पा मंदिर का निर्माण कब हुआ था ?

रामप्पा मंदिर का निर्माण 1213 ईस्वी पूर्व में हुआ था।

6. दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर में प्रवेश के लिए कोई विशेष परिधान या वस्त्र जरुरी है ?

जी नहीं इसके लिए किसी भी विशेष प्रकार का परिधान या वस्त्र जरुरी नहीं है।

7. मंदिर में कैमरे को ले जा सकते है कोई प्रतिबन्ध तो नहीं है ना ?

जी हाँ आप ले जा सकते है बशर्ते आप किसी भी व्यक्ति की भावनाओ को ठेस पहुचाये बिना।

8. वारंगल से रामप्पा मंदिर के बीच की दुरी क्या है ?

यदि आप राष्ट्रीय राजमार्ग 163 का प्रयोग करते है तो वारंगल से रामप्पा मंदिर के बीच की कुल दुरी 67 किलोमीटर पड़ेगी।

9. रामप्पा मंदिर किस राज्य में स्थित है ?

रामप्पा मंदिर तेलंगाना में स्थित है।

9. रामप्पा मंदिर की लोकेशन [Ramappa temple location]

9. निष्कर्ष [Conclusion]

दोस्तों पालनपेट में स्थति यह मंदिर अपना ऐतिहासिक महत्व रखता है। इस मंदिर की कलाकृति और नक्काशीदार स्तम्भों की बनावट पर्यटकों और भक्तों को काफी ज्यादा आकर्षित करता है।

अब इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल की सूचि में रखने पर इस स्थान की महत्व और भी बढ़ गया है।

दक्षिण भारत के तमाम मंदिर या उनके स्थापत्य कला का कोई जवाब नहीं। इनमे से कुछ मंदिर तो सिर्फ एक ही पत्थर को काटकर बनाये गए है। इन मंदिरों की एक खासियत होती है।

ये मंदिर उत्तर भारत के मंदिरों की तरह नागर शैली में नहीं बल्कि द्रविण शैली में बनाये गए है। यदि आप एक इतिहास के विद्यार्थी है तब तो यह मंदिर आपके लिए और भी रोचक बन जाता है।

उम्मीद करता हूँ की आप सभी को यह जानकारी पसंद आयी होगी।

धन्यवाद।

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