जाने काशी स्थित मणिकर्णिका घाट का महत्व | Manikarnika ghat varanasi |

दोस्तों काशी नगरी को तो आपस सभी लोग जानते ही होंगे। यह एक प्राचीन और पौराणिक नगरी है जहाँ पर वर्षों से अपनी प्रतिष्ठा और सम्पन्नता को बरकरार रखे हुए है।

फिर चाहे बात अस्सी घाट, रविदास घाट, की हो या फिर मणिकर्णिका घाट की। ये ऐसी जगहे है जिनका इतिहास के साथ साथ आज के युग में भी काफी महत्व है।

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम चलने वाले है काशी [ यानी जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है ] में स्थित मणिकर्णिका घाट की यात्रा पर।

मणिकर्णिका घाट [Manikarnika ghat in Hindi]

मणिकर्णिका घाट उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में स्थित है। यह घाट एक शमशान घाट है।

इस स्थान का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है। इस घाट को महाश्मशान घाट के नाम से भी जाना जाता है।

वाराणसी के सभी 84 घाटों में से एक है मणिकर्णिका घाट हिन्दू धर्म से संबधित व्यक्ति के मृत्यु के पश्चात इसी घाट या फिर हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम क्रियाकर्म या शवदाह किया जाता है।

मणिकर्णिका दो प्रमुख शब्दों से मिलकर बना है मणि और कर्णिका।

मणि का मतलब जवाहरात और कर्णिका का मतलब होता है – कान। इस घाट की एक प्रमुख विशेषता यह है की यह हमें वास्तविक जीवन की सत्यता से परिचित कराता है।

ऐसा कहा जाता है की इस घाट पर कभी भी अग्नि यानी आग नहीं बुझ सकती और जिस दिन ऐसा होगा वह दिन महाप्रलय का दिन होगा।

यदि कभी यदि आप यहाँ पर आये हो तो आप गौर करेंगे की इस घाट पर चौबीसो घंटे अग्नि जलती रहती है।

वैसे तो इस घाट पर लोग आना पसंद नहीं करते लेकिन देश-विदेश से आये लोग जिन्हे इन जगहों पर रूचि होती है वही इस घाट के दर्शन करने के लिए आते रहते है ।

2. मणिकर्णिका घाट की मान्यताएं

मणिकर्णिका घाट के बारे में कई मान्यताये प्रचलित है।

भगवान् भोलेनाथ जी द्वारा यही पर माता पार्वती जी का अंतिम संस्कार किया था , इसी कारण यह घाट महाश्मशान घाट प्रसिद्ध है

एक बार माता पार्वती जी का कानो का कुण्डल यही कुंड के आस पास कही पर गिर गया था। जिसे महादेव जी ढूंढने में असफल रहे इस कारण इस घाट का नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा ।

विष्णु भगवन द्वारा भोलेनाथ की तपस्या करते हुए सुदर्शन चक्र द्वारा एक कुंड की स्थापना की थी। विष्णु जी की तपस्या से खुश होकर भोलेनाथ वरदान देने के लिए आये ।

परन्तु विष्णु जी के कान के कुण्डल इसी कुंड में गिर गया इस वजह से इसका नाम पड़ा मणिकर्णिका घाट। यह घाट हमें जीवन और मृत्यु की सच्चाई को बयां करती है ।

मणिकर्णिका घाट की की अनूठी परंपरा

मणिकर्णिका घाट पर प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्रि की सप्तमी की रात में एक महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

इस महोत्सव में नगर वधुएं यानी वेश्याएं अपने पैरों में घुंघरू बांधकर एक अनूठी परंपरा का प्रतिनिधित्व करती है।

ऐसा कहा जाता है की इस परम्परा की शुरुआत आमेर का राजा सवाई मान सिंह के समय से हुयी थी।

सवाई राजा मान सिंह ने ही मणिकर्णिका घाट पर एक मंदिर का निर्माण भी करवाया था।

इन नगर वधुओं का मानना है की यदि वह जलती चिताओ के सामने नटराज भगवान को अपना आराध्य यानी भगवान मानकर यदि वे नाचेंगी तो उन्हें अगले जन्म में नगरवधू का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा और वह भी समाज का एक हिस्सा बन सकेंगी।

जिस प्रकार से अन्य महिलाये या स्त्रियां अपने परिवार के साथ समाज में रहती है, वैसे वह भी अपने परिवार के साथ रह पाएंगी।

आइये सैर करें [Lets take a walk]

हमारी यात्रा वाराणसी जंक्शन पर उतरने के बाद से प्रारम्भ होती है। वाराणसी जंक्शन यानि कैंट रेलवे स्टेशन बनारस आने का सीधा और सटीक रेलवे स्टेशन है जहाँ से आप इस शहर में दाखिल हो सकते है ।

यहां पर आपको ढेर सारे ऑटो या बसें मिल जाएँगी जिनसे आप बनारस के अंदर जा पाएंगे।

मेरा मानना है की यदि आप ऑटो से नहीं बल्कि रिक्शा से आते है तो आपको बस या ऑटो के मुकाबले आपको बनारस की गलियों में ज्यादा समय गुजारने को मिलेंगे।

इस प्रकर हमने भी एक ऑटो की जगह रिक्शा चुना जिससे की हम बनारस और उसकी संस्कृति को जान सकें।

इस दौरान हमने बनारस की गलियों को भी करीब से देखा। कैंट रेलवे स्टेशन से हमें रिक्शेवाले भैया ने नयी सड़क होते हुए मणिकर्णिका घाट तक ले आये।

हम करीब 35 मिनट के लगभग मणिकर्णिका घाट के प्रवेश द्वार पर खड़े थे। इस दौरान हमने बनारस की भूलभुलैया वाली गलियों को देखा जिसे हम शायद ही कभी भूल पाएंगे। वाकई बनारस गलियों का शहर है।

मणिकर्णिका घाट के प्रवेश द्वार पर आपको कुछ पुलिस कर्मचारी या सिक्युरिटी गॉर्ड मिलेंगे जो यहाँ पर लोगों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए 24 घंटे मौजूद रहते है।

यहाँ से प्रवेश करने के बाद आपको लगभग 250 से 350 मीटर चलने पर घाट पर पहुंचेंगे। यदि आप पहली बार आये है तो आपको यहाँ का माहौल आपके होश उड़ा देगा।

मणिकर्णिका घाट एक शवदाह घाट है जहां पर लगातार शवों को जलाया जा रहा था ।

घाट से हटकर दूसरी तरफ मुंडन का कार्य चल रहा था। जहाँ पर लोग अपने सिर के बाल का दान कर रहे थे।

इस घाट पर लोगो की आवाजाही चौबीस घंटे रहती है इस दौरान शवों को एक के बाद एक जलाया जाता है।

यह घाट बनारस के 84 घाटों में से प्रमुख है। इस घाट पर आने के बाद हमने हमने एक बात गौर की इस जगह पर मच्छर नहीं काट रहे थे जबकि अन्य घाटों पर आप जायेंगे तो मच्छर आपका जीना दूभर कर देंगे।

इसलिए आप अपने साथ एक क्रीम जरूर ले जाये ताकि आप मच्छरों के काटने से बच सके।

कुल मिलकर यहाँ की स्थिति कमजोर दिल वालों के लिए बिलकुल ही नहीं है।

घाट पर कुछ दूर घूमने के पश्चात हम घाट के इक किनारे बैठकर माँ गंगा के लहरों का लुफ्त उठाने लगे।

पंचकोशी यात्रा भी यही से प्रारंभ होती है। मणिकर्णिका घाट पर आपको एक विचित्र या यूँ कहें की बनारस का सबसे अनोखा मंदिर स्थित है जिसे काशी करवट के नाम से जाना जाता है।

यह मंदिर पूरी तरह से खड़े ना होकर यह झुका हुआ है।

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की यदि माँ गंगा का पानी यदि इसकी शिखर को छू ले तो पूरा बनारस ही डूब जायेगा।

लेकिन आज तक इस मंदिर का शिखर डूबा नहीं है। मणिकर्णिका घाट के दर्शन के पश्चात हमने अपने होटल की तरफ रुख किया। इस प्रकार से हमारी यात्रा सम्पन्न हुयी।

परिवहन सुविधा [How to reach Manikarnika ghat]

  • मणिकर्णिका घाट आने के लिए आप मुख्यतः 3 साधन का उपयोग कर सकते है.
सड़क मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग 2
नजदीकी हवाई अड्डाबाबतपुर हवाई अड्डा
नजदीकी रेलवे स्टेशनकैंट रेलवे स्टेशन

मणिकर्णिका घाट से दुरी

विश्वनाथ मंदिर से मणिकर्णिका घाट की दुरी है-400 m
कैंट रेलवे स्टेशन से मणिकर्णिका घाट की दुरी है-5.3 km
BHU से मणिकर्णिका घाट की दुरी है-7.3 km
बाबतपुर Airport से मणिकर्णिका घाट की दुरी है-26.5 km

मणिकर्णिका घाट से संबधित कुछ तथ्य [Manikarnika ghat facts]

  • मणिकर्णिका घाट सप्ताह के सातो दिन एवं वर्ष के 365 दिन खुला रहता है
  • यदि आप घाट घूमना चाहते है तो सुबह में या फिर शाम में आकर घूम सकते है .
  • राजा हरिश्चंद्र ही वह राजा थे जिन्होने अपना सब कुछ दान कर दिया था यहाँ तक की अपने पत्नी और बच्चे को भी .
  • हरिश्चंद्र जी ने मणिकर्णिका घाट पर रहकर अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया और एक सेवक के रूप में कार्य करते रहे.
  • वाराणसी के 84 घाटों में से किसी भी घाट पर आपको कोई भी दरवाजा नहीं मिलेगा . यह घाट वर्षभर खुले रहते है .
  • मणिकर्णिका घाट पर शवों को दो प्रकार से अंतिम संस्कार किया जाता है – लकड़ी एवं बिजली द्वारा .
  • हरिश्चंद्र घाट बिजली द्वारा दाह संस्कार के लिए जाना जाता है .
  • तंत्र साधन के लिए हरिश्चंद्र घाट प्रख्यात है .
  • आप भारतवर्ष के किसी भी क्षेत्र से हो शवों का दाहसंस्कार बिना किसी procedure के सम्पन्न करा सकते है बस इसके लिए आप सनातन धर्म से सम्बंधित (Belong) हो.
  • मणिकर्णिका घाट के पास ही में स्थित है अंगारेश्वर स्वामी मंदिर .
  • आप यहाँ Boat Riding का मजा ले सकते है .
  • घाट के पास आप स्नान भी कर सकते है.
  • घाट की फोटोज आप ले सकते है बशर्ते किसी की भावना को ठेस पहुचाये बिना .
  • वाराणसी कैंट रलवे स्टेशन से मणिकर्णिका घाट की दुरी लगभग ३ कम है और एयरपोर्ट से यह दुरी लगभग१९ कम है

मणिकर्णिका घाट की फोटो [Manikarnika ghat images]

निष्कर्ष [Conclusion]

दोस्तों बनारस गलियों और घाटों का शहर है। इस स्थान का परिचय हमें पौराणिक गृंथों  में भी मिलता है।

प्राचीन समय से लेकर आज तक इस जगह का महत्व काम नहीं हुआ है। यही विश्वप्रसिद्ध गंगा आरती जो की दशास्वमेध घाट पर होती है। जिसे देखने के लिए देश विदेश से लोग आते है।

वही राज्य सरकार द्वारा इस घाट को सुरक्षित रूप देने के लिए विभिन्न प्रकार की परियोजनाएं भी चलायी जाती है।

दोस्तों यदि आप कभी भी बनारस आये तो एक बार दशाश्वमेध घाट पर जरूर जाये गंगा आरती देखने।

वही आप देव दीपावली भी एक अनोखी परंपरा का भी निर्वहन किया जाता रहा है।

सबसे अंतिम बात यहाँ पर आप नाव की सवारी जरूर करे इससे आपको इस जगह को और भी अधिक जानने और समझने का मौका मिलेगा।

धन्यवाद !

मणिकर्णिका घाट का मैप [Manikarnika ghat map]

सवाल जवाब [FAQ]

1. क्या रविवार को मणिकर्णिका घाट खुला रहता है ?

हाँ बिलकुल यह घाट पुरे सप्ताह और वर्ष 365 दिन खुले रहते है। आप कभी यहाँ पर घूमने के लिए आ सकते है।

2. इस घाट पर शवदाह किस प्रकार किया जाता है ?

इस घाट पर दो तरीके से शवदाह की प्रक्रिया पूरी की जाती है। पहला बिजली के द्वारा और दूसरा पारम्परिक तरीके यानी की लकड़ी के द्वारा।

3. तंत्र साधना के लिए वाराणसी में कौन सा घाट प्रसिद्ध है ?

तंत्र साधना के लिए वाराणसी का हरिश्चंद्र घाट प्रसिद्ध है।

4. मणिकर्णिका घाट पर शवदाह के लिए क्या कोई प्रक्रिया अपनानी पड़ती है ?

आप भारतवर्ष के किसी भी क्षेत्र से हो शवों का दाहसंस्कार बिना किसी procedure के सम्पन्न करा सकते है बस इसके लिए आप सनातन धर्म से सम्बंधित हो.

5. काशी करवट कहाँ पर स्थित है ?

काशी करवट मणिकर्णिका घाट के पास ही में स्थित हिन्दू धर्म के अनुनायियों का प्रसिद्ध मंदिर है।

6. क्या इस घाट पर स्नान कर सकते है ?

हाँ बिलकुल। मणिकर्णिका घाट पर स्नान के बारे में एक मान्यता है की इस जगह पर स्नान करने पर आपको पुण्य की प्राप्ति होती है और इसके साथ ही आपके पाप भी धूल जाते है।

7. क्या इस घाट पर फोटो ले सकते है ?

घाट की फोटोज आप ले सकते है बशर्ते किसी की भावना को ठेस पहुचाये बिना .

8. कैंट रेलवे स्टेशन से मणिकर्णिका घाट की दुरी कितनी है ?

वाराणसी कैंट रलवे स्टेशन से मणिकर्णिका घाट की दुरी लगभग 3 km है और एयरपोर्ट से यह दुरी लगभग19 km है

9. मणिकर्णिका घाट का अर्थ क्या होता है ?

मणिकर्णिका दो प्रमुख शब्दों से मिलकर बना है मणि और कर्णिका। मणि का मतलब जवाहरात और कर्णिका का मतलब होता है – कान।

10. क्या इस घाट का सम्बद्ध आमेर के राजा सवाई जय सिंह से है ?

हाँ बिलकुल , मणिकर्णिका घाट पर प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्रि की सप्तमी की रात में एक महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस महोत्सव में नगर वधुएं यानी वेश्याएं अपने पैरों में घुंघरू बांधकर एक अनूठी परंपरा का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसा कहा जाता है की इस परम्परा की शुरुआत आमेर का राजा सवाई जय सिंह के समय से हुयी थी।

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