भारत में प्राचीन समय से ही विभिन्न इमारतों का निर्माण होता रहा है। इन इमारतों का निर्माण पिछले कई सदियों के दौरान हुआ था। इनमे ज्यादातर इमारतें किसी ना किसी राज्य विशेष को सम्बोधित करती रही है।
प्राचीन राजा या सुलतान अपने राज्य की विशेषताओं, कला एवं संस्कृति को दिखाने के लिए विभिन्न प्रकार की इमारतों जैसे की मंदिरों मस्जिदों, दुर्ग इत्यादि का निर्माण करके अपने राज्य की समृद्धि को दर्शाते रहे है।
यदि हम उत्तर भारत की बात करें तो हमें ज्यादातर प्राचीन एवं प्रमुख इमारतें मुग़ल सुल्तानों खासकर मुग़ल बादशाह शाहजहां के द्वारा निर्मित दिखाई देता है।
ऐसा इसलिए है क्यूंकि शाहजहां के वक्त बाकी राज्यों की तरफ से विद्रोह होने बंद हो गए थे और तो और उसने अपने राज्य के विस्तार को लेकर कोई खास रणनीति नहीं बनायीं थी।
इस वजह से उसने युद्ध तो कम किये लेकिन उसे कला और संस्कृति के विकास में मदद के लिए अच्छा खासा वक्त मिला और उसने उस समय का भरपूर उपयोग किया।
वही बात करें हम दक्षिण भारत के राजाओ की तो हम देखते है की इन राजाओं ने उत्तर भारत के राजाओं के तुलना में अपने राज्य में कला और संस्कृति को आगे बढ़ने के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
चूँकि दक्षिण भारत समुद्र के खुले रास्ते में है इसलिए बाहर से आये हुए व्यक्तिओं का भी इनकी विभिन्न कलाओं में योगदान दिखाई पड़ता है और सच कहूं तो दक्षिण भारत के राज्यों ने जिस कला शैली का प्रयोग करके इन इमारतों का निर्माण किया वह वाकई कबीले तारीफ है।
दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम चलने वाले है दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में जहाँ पर स्थित है – लाड खान का मंदिर। जिसे भारत का सबसे प्राचीन शिव मंदिर के तौर पर जाना जाता है।
तो दोस्तों आइये चलते है उस प्राचीन धरोहर के दर्शन करने।
1. लाड खान मंदिर कहाँ पर स्थित है ? [Lad khan temple location]
लाड खान मंदिर कर्नाटक के ऐहोल में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 5 वि सदी में हुआ था। यह मंदिर चालुक्य वंश के दौरान हुए कला और संस्कृति को दर्शाता है। प्राचीन समय में इस मंदिर का नाम चालुक्य शिव मंदिर था।
लेकिन एक मुस्लिम शासक द्वारा इस मंदिर को एक आवास के रूप में अपनाने के बाद इस मंदिर का नाम लाड खान मंदिर पड़ा।
दोस्तों कर्नाटक का ऐहोल विविध संस्कृतियों और राजाओं के इतिहास को संभलकर रखे हुए है। ऐसा इसलिए भी है क्यूंकि दक्षिण भारत के प्राचीन राजाओं ने अपनी कला एवं संस्कृति का केंद्र कर्नाटक को ही बनाये रखा था।
ऐहोल में ज्यादातर मंदिरों या प्राचीन इमारतों को काले पत्थरों के माध्यम से बनाया गया है। जैसा की हम सभी जानते है दक्षिण भारत के ज्यादातर मंदिर अपने द्रविनियन शैली के लिए जाने जाते रहे है।
इसी शैली में लाड खान का मंदिर भी निर्मित है। जिनमे मुखमंडाम, सभामंडप, प्रदक्षिणापथ और गर्भगृह इत्यादि सम्मिलित होते है।
2. लाड खान मंदिर का इतिहास [Lad khan temple history]
ऐहोल समूह के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक लाड खान का मंदिर माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्यूंकि ऐहोल की शुरुआत इसी प्रकार के अन्य मंदिरों के साथ हुयी थी।
ऐहोले के मंदिरों के निर्माण में चालुक्य वंशीय राजाओं का बड़ा योगदान रहा था।
इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंशीय राजा पुलकेशिन प्रथम द्वारा 553-67 BCE में करवाया गया था वही मंदिर के बाकी हिस्सों को आगे बढ़ने का कार्य उनके पुत्र पुलकेशिन द्वितीय ने किया था।
इसके आलावा ऐहोल के अन्य मंदिरो का निर्माण जयसिंह और रणराग द्वारा करवाया गया था।
3. लाड खान मंदिर की स्थापत्य कला [Lad khan temple architecture]
लाड खान मंदिर द्रविनियन शैली में निर्मित एक खूबसूरत मंदिर है। हालांकि उस समय मंदिरों में मंडपों का प्रचलन तो नहीं था लेकिन उसी प्रकार का एक मिलता-जुलता आकार हमें देखने को मिलता है।
मंदिर के बाहरी हिस्से पर 6 स्तम्भ है वही मंदिर के भीतरी हिस्से में हमें 8 वह मुख्य भाग को संभालने के लिए 2 अन्य स्तम्भों का प्रयोग हमें देखने को मिलता है।
इन स्तम्भों पर बाकी के मंदिरों की तरह कलाकृति या चित्र उकेरी गयी है।
इस मंदिर में हमें केवल मुखमंडप और सभामंडप ही देखने को मिलता है।
इन दोनों ही मंडपों को 12-12 स्तम्भों के माध्यम से इस तरीके से टिकाया गया है की आज तक इनमे दरारें तक नहीं दिखलाई पड़ती है।
ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण सूर्य देव की आराधना करने के लिए किया गया था लेकिन समय के साथ साथ इसमें विभिन्न परिवर्तन होते रहे और आज इस मंदिर को भगवान शिव जी के प्राचीन मंदिर के रूप में देखते है।
मंदिर के छतो पर यदि आप गौर करेंगे तो आपको विभिन्न पत्थर की नालियां दिखलाई पड़ेंगे जो की बारिश के पानी को आसानी से नीचे धकेलने में सक्षम है।
दूर से देखने पर यह लकड़ी से बना हुआ एक आकर्षक वास्तुकला के दर्शन होता है लेकिन ऐसा नहीं है इसे इस प्रकार से बनाया गया था ताकि बारिश के पानी को दूर हटाया जा सके और मंदिर के छतों को सुरक्षित रखा जा सके।
विभिन्न इतिहासकारो और विद्वानों का मानना है की पहले इसे एक निवास के रूप में बनाया गया था फिर बाद में इसे एक मंदिर का रूप दे दिया गया।
4. कला और संस्कृति में चालुक्य राजाओ का योगदान [Chalukya Contribution in art and literature]
- चालुक्यों ने संस्कृत भाषा को आगे बढ़ने में काफी मदद की.
- महाराष्ट्र व ऐहोले के अभिलेखों में हमें गद्य और पद्य देखने को मिलता है.
- पुलकेशिन २ के सामंत गंगराज दुर्विनीत ने शब्दवतार नामक व्याकरण पद्य की रचना की थी.
- पंडित उदयदेव जी द्वारा जैनेन्द्र व्याकरण की रचना की गयी.
- विजयदित्य के अभिलेख से हमें पता चलता है की चालुक्यों की राजधानी वातापी में १४ विद्याओं में पारंगत हजारों ब्राह्मण निवास करते थे.
- चालुक्य राजाओं ने अश्वमेध यज्ञ, वाजपेय यज्ञ इत्यादि महत्वपूर्ण यज्ञ अनुष्ठानो द्वारा अपनी वीरता का प्रदर्शन किया करते थे.
- इस काल में स्त्रियां भी विदुषी और दानशील होती थी.
- सामंतवाद का अस्तित्व भी था
- चालुक्य वंश के अंतिम शासकों ने कला के लिए पत्तदकल और आलमपुर को चुना था.
- इन्होने नागर एवं द्रविण शैली से निर्मित भवनों का निर्माण किया था.
4.1 ऐहोल के अन्य पर्यटन स्थल [Tourist place in Aihole]
दोस्तों कर्नाटक का ऐहोल विभिन्न प्रकार के मंदिरों और गुफाओं के लिए जाना जाता है।
यहां एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ 125 तो हिन्दू के आराध्य का मंदिर है इसके आलावा यहाँ जैन धर्म से सम्बंधित प्राचीन इमारतें भी स्थित है।
तो आइये देखते है वह कौन-कौन सी जगहे है जिन्होंने कर्नाटक का मान बढ़ाया है।
- चक्र गुड़ी / मंदिर
- दुर्गा मंदिर
- लाड खान मंदिर या चालुक्य शिव मंदिर
- मेगुती जैन मंदिर
- सूर्यनारायण मंदिर
- हुच्हिमाल्ली मंदिर
- रावण पहाड़ी
4.1.1 दुर्गा मंदिर [Durga temple Aihole , Karnataka]
कर्नाटक के ऐहोल मंदिर के समूह में दुर्गा मंदिर का नाम भी आता है। कई शोध द्वारा पता चलता है की मंदिर का निर्माण लाड खान मंदिर के निर्माण के काफी बाद किया गया था।
इस मंदिर की वास्तुकला में हमें बौद्ध धर्म की झलक देखने को मिलती है। ऐहोले के अन्य मंदिरो की तरह इस मंदिर का निर्माण भी पत्थर के ऊपर पत्थर को जोड़कर किया गया था।
मंदिर कई स्तम्भों के सहारे टिका हुआ है जिसपर विभिन्न कलाकृतियां उकेरी गयी है जो मंदिर को शोभा को और भी बढ़ाने का कार्य करती है।
मंदिर के बाहर भी कई छोटे-छोटे पत्थर के चबूतरे बनाये गए है जिन पर कलाकृति उकेरी गयी है।
जो कही ना कही चालुक्य राजवंशों के शासनकाल के दौरान हुए कला और संस्कृति के विकास को दर्शाता है।
इस मंदिर का ठीक से रखरखाव ना होने के कारण इसमें कई जगहों पर दरारें पड़ गयी है जो की एक अच्छी बात नहीं है।
राज्य सरकार द्वारा इसे दुरुस्त करवाना चाहिए ताकि पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके।
इस मंदिर में मुखमण्डप, सभामंडप, गर्भगृह और प्रदक्षिणापथ इत्यादि सम्मिलित है।
यह मंदिर ऐहोल का पहला ऐसा मंदिर था जिसमे यह चारों चीज़ें या विशेषताएं मौजूद थी।
यहाँ प्रतिक के रूप में गरुड़ को स्थापित किया गया है। इस मंदिर का प्रमाण हमें यहाँ पर स्थित एक शिलालेख से प्राप्त होता है, जिसमे विजयादित्य का उल्लेख मिलता है
4.1.2 हुच्हिमाल्ली मंदिर [Huchchimalli temple Aihole karnataka ]
यह मंदिर भी ऐहोल मंदिर के समूह वाले मंदिर में से एक है। इन मंदिरों को 6 वि शताब्दी के दौरान निर्मित किया गया था।
यह पहला ऐसा मंदिर था जिसके प्रवेश द्वार सीधे भगवान जी के सम्मुख खुलते है।
यह मंदिर ऐहोल के मंदिरों के अपेक्षा काफी छोटा है ऐसा इसलिए है क्यूंकि इस मंदिर के सभामंडप में स्तम्भों का प्रयोग नहीं देखने को मिलता है।
इसके आलावा इस मंदिर में हमें शिखर भी नहीं देखने को मिलता है जिसका तात्पर्य है की इस मंदिर की छतें बिलकुल ही सपाट है।
4.1.3 मेगुती मंदिर [Meguti Temple Aihole Karnataka]
यह मंदिर मेगुती नामक पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसका नाम मेगुती मंदिर पड़ा।
इस मंदिर का निर्माण चालुक्य राजवंश के सबसे शक्तिशाली शासक पुलकेशिन द्वितीय द्वारा 634-35 BCE में करवाया गया था।
इस बात का प्रमाण हमें उनके ऐहोल अभिलेख के माध्यम से प्राप्त होता है जिसे उनके राज दरबारी रविकीर्ति द्वारा लिखा गया था।
इस मंदिर में सबसे प्रमुख संरचना महामंडप की है। यह मंदिर जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करती है इसीलिए इसे मेगुती जैन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
इसके स्तम्भों पर कई जैन धर्म कलाकृति देखने को हमें मिलती है।
दोस्तों आप सभी के द्वारा जैसलमेर किले के बारे में कुछ सवाल पूछे गए है। जिनमे से कुछ को हमने इस आर्टिकल में सबमिट किया है।
उम्मीद है हमारे द्वारा दिए गए जवाबों से आप सभी संतुष्ट हो पाएंगे।
अगर फिर भी आपके मन में इस जगह से लेकर कोई भी क्वेरी हो तो कमेंट में जरूर बताएं।
5. लाड खान मंदिर की तस्वीरें [Lad khan temple photo]
6. निष्कर्ष [Conclusion]
दोस्तों चालुक्य वंशीय राजाओं ने अपने समय में एक से बढ़कर एक मंदिरों का निर्माण करवाया। इन मंदिरो को सिर्फ और सिर्फ पत्थरों के मदद से ही जोड़ा गया था।
कुछ जगहों पर इन्हे एक के ऊपर एक रखकर जोड़ा गया तो कही पर पहाड़ी को काटकर ही उसे एक गुफा का स्थान दे दिया गया।
इन्होने ने ही मंदिरों में मुखमण्डप, सभामंडप, गर्भगृह और प्रदक्षिणापथ इत्यादि चीज़ों को ईजाद किया और उसे बहुत ही कुशलता से स्थापित किया।
लाड खान मंदिर जिसे चालुक्य शिवा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है इसे भारत का प्रथम शिव जी को समर्पित मंदिर के तौर पर जाना जाता है।
इस मंदिर में हालाँकि पूजा नहीं होती है लेकिन यहाँ के स्थानीय निवासी शिवरात्रि के दिन मंदिर को साफ- सुथरा रखते है और पूजा करते है।
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6. लाढ खान मंदिर की लोकेशन [lad khan temple location]
7. सवाल जवाब [FAQ]
लाड खान का मंदिर कर्णाटक के ऐहोल में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है।
लाडखान मंदिर का निर्माण महान चालुक्य राजवंश पुलकेशिन प्रथम ने करवाया था।
चालुक्य राजवंश दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण राजवंश था। इनकी राजधानी वातापी या बादामी था। इसीलिए इन्हे वातापी या बादामी के चालुक्य के नाम से जाना जाता है।
इनका साम्राज्य कर्नाटक दक्षिणी मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात तक फैला हुआ था।
हाँ बिलकुल । उत्तर भारत के प्रतापी राजा हर्षवर्धन को चालुक्य वंश के पुलकेशिन द्वीतिया द्वारा नर्मदा नदी के तट पर हराया था।
इसी हार के पश्चात हर्षवर्धन ने दोबारा दक्षिण के राज्यों को विजिट करने केबारे में नहीं सोचा। इस बात का प्रमाण हमें पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोले अभिलेख के माध्यम से प्राप्त होता है।
यह दक्षिण भारत के एक महत्वपूर्ण राज्य कर्नाटक का प्रमुख स्थान है जिसका इतिहास में बहुत योगदान है। इसके आलावा चालुक्य राजवंश की गाथा को सुनाने वाला यह एक अभिलेख भी है।
लाड खान मंदिर पत्थर से निर्मित है।
लाड खान मंदिर सुबह के 9 बजे से लेकर शाम के 5 बजे तक खुला रहता है।
हां बिलकुल आप लाड खान मंदिर में फोटग्राफी कर पाएंगे। इसके आलावा आप विडिओ भी ले सकते है।